वैदिक शब्द में “वेद का अर्थ ज्ञान” माना जाता है। इसमें रहने वाले लोगों को आर्य कहा जाता था और आर्य का अर्थ “श्रेष्ठ” माना गया है।
वैदिक काल का समय और विभाजन-
वैदिक काल का समय 1500-600 ईसा पूर्व माना गया है। इसके दो भाग हैं जेल में पहला ऋग्वेद काल-1500-1000 ईसा पूर्व और उत्तर वैदिक काल 1000 से 600 ईसा पूर्व तक माना गया है।
ऋग्वेद काल में ऋग्वेद नामक ग्रंथ की रचना हुई और उत्तर वैदिक काल में सामवेद यजुर्वेद और अथर्ववेद लिखे गए।
रामायण जो महर्षि वाल्मीकि और महाभारत जो महर्षि वेदव्यास के द्वारा लिखी गई, उनका समय भी उत्तर वैदिक काल ही माना जाता है।
1500 ईसा पूर्व में आर्यों का आगमन मध्य एशिया से हुआ था। आर्यों का अधिकार उत्तर में कश्मीर तक दक्षिण में राजस्थान तक पूर्व में गंगा बैंक तक और पश्चिम में अफगानिस्तान तक था।
यह एक ग्रामीण सभ्यता थी जिसका मुख्य व्यवसाय कृषि करना और पशुपालन करना था। इस समय के परिवार पितृसत्तात्मक प्रधान होते थे ऋग्वेद में सबसे ज्यादा बार प्रयोग किया गया शब्द भी ‘पिता’ है।जिसका प्रयोग 335 बार किया गया है।
वैदिक साहित्य-
वैदिक साहित्य में वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, उपनिषद और आरण्यक शामिल हैं
ऋग्वेद–
इसकी रचना 1500 से 1000 ईसा पूर्व के बीच में की गई। यह सबसे प्राचीन वेद है और इसके प्रमुख देवता इंद्र हैं। इसमें 10 मंडल हैं, जिन्हें वेदव्यास ने संकलित किया है। 2 से लेकर 7 तक के मंडल सबसे प्राचीन और मंडल संख्या 1 और 10 सबसे नए मंडल माने जाते हैं।
ऋग्वेद में मंत्रों की संख्या 10462 है। सबसे महत्वपूर्ण मंडल तीसरा है। इसके रचनाकार ऋषि विश्वामित्र हैं। इसमें गायत्री मंत्र का वर्णन है जो सूर्य देव की स्तुति या सावित्री को समर्पित है।
ऋग्वेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाला होतृ कहलाता है। इसके ब्राह्मण ग्रंथ दो माने गए हैं-
1. एतरेय
2.कौषितकी
इन ब्राह्मण ग्रंथों के द्वारा ऋग्वेद व्याख्या की गई है। ऋग्वेद की सबसे पवित्र नदी सरस्वती नदी को माना गया है,लेकिन सबसे प्रमुख नदी सिंधु नदी मानी गई है
सामवेद-
साम का अर्थ-गायन होता है। इस वेद को भारतीय संगीत का जनक माना जाता है। संगीत के सात स्वरों का प्रमुख उल्लेख यहीं से मिला है। इसमें सूर्यदेव से संबंधित स्तुति का भी वर्णन है। इसमें ऋग्वेद के वह मंत्र शामिल किए गए हैं जिनका गायन किया जा सकता है उच्चारण नहीं।
सामवेद के मंत्रों का गायन करने वाला उदगाता कहलाता है। सामवेद का ब्राह्मण ग्रंथ पंचवीस है, जिसे तांडय ब्राह्मण भी कहते हैं।
यजुर्वेद-
यजु का अर्थ यज्ञ होता है। यजुर्वेद में यज्ञ के नियमों व अन्य धार्मिक क्रियाकलापों का संकलन है। इसमें गद्य और पद्य दोनों में रचना की गई हैं। इसका गायक करता अधर्व्यू कहलाता है।
इसके ब्राह्मण ग्रंथ 2 हैं-
1. तैतृय
2.शतपथ
अथर्ववेद-
इसमें काले जादू व अन्य आयुर्वेदिक उपचारों से संबंधित मंत्रों का संकलन है। इसका उच्चारण करता ब्रह्मा कहलाता है और इसका ब्राह्मण ग्रंथ गोपथ ब्राह्मण है।
आरण्यक-
इन ग्रंथों की रचना वनों में की गई है। इनमें से 7 महत्वपूर्ण माने गए हैं।
उपनिषद-
वह ज्ञान जो गुरुओं के समीप बैठकर प्राप्त किया गया उसे उपनिषद के नाम से जाना जाता है। इनका आधार दर्शन है। इनकी संख्या 108 है, जिनमें से 12 प्रमाणित रुप से प्राप्त किए गए हैं।
मुंडकोपनिषद-सत्यमेव जयते.
मंडूकोपनिषद-सत्यम शिवम सुंदरम.
कठोपनिषद-यमराज और नचिकेता संवाद।
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