क्या आप सिंधु घाटी की सभ्यता का ART AND CULTURE FOR UPSC AND OTHER EXAMS को जानने और समझने के लिए यहां पर आए हैं?
तो कुछ ही मिनट में आप पूरी तरह सिंधु घाटी की सभ्यता के ART AND CULTURE से परिचित हो जाएंगे।
सिंधु घाटी की सभ्यता का ART AND CULTURE FOR UPSC AND OTHER EXAMS-
क्या आप सिंधु घाटी की सभ्यता का ART AND CULTURE FOR UPSC AND OTHER EXAMS–
यह एक कांस्य युगीन नगरीय सभ्यता थी। प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया के साथ-साथ यह विश्व की प्राचीनतम तीन सभ्यताओं में से एक है।
क्षेत्र-
यह सभ्यता सिंधु नदी तथा समकालीन पश्चिम उत्तर भारत और पूर्वी पाकिस्तान क्षेत्र से होकर बहने वाली घग्गर-हाकरा नदी की घाटियों में विकसित हुई। सिंधु घाटी सभ्यता के दो प्रमुख स्थल हड़प्पा और मोहनजोदड़ो क्रमश: रवि एवं सिंधु नदी के किनारे पर स्थित हैं।
जनसंख्या-
अपने विकास के चर्म काल में सिंधु घाटी की सभ्यता की जनसंख्या लगभग 5 लाख से अधिक होने का अनुमान लगाया गया है।
नगर-नियोजन-
अत्याधुनिक जल निकासी प्रणाली तथा योजनाबद्ध सड़कों और घरों से पता चलता है कि आर्यों के आगमन से पहले भारत में एक अति विकसित संस्कृति का अस्तित्व था।
सड़कें-
यहां की नगर व्यवस्था आयताकार ग्रिड प्रणाली पर आधारित थी। यहां की सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।
भवन-
इस सभ्यता में मुख्यतः तीन प्रकार के भवनों का निर्माण किया गया है-
- निवास गृह
- स्तंभों वाले बड़े हाल
- सार्वजनिक स्नानागार।
ढकी हुई नालियों और मेनहोल की उत्तम व्यवस्था थी और भवन पकाई गई दो से निर्मित किए गए थे। ईटों के प्रचलित आकार का अनुपात 4:2:1 था।
भवनों में मिली सीढ़ियों से प्रतीत होता है कि दो मंजिले भवन का निर्माण हुआ था।
नगरों का विभाजन दुर्गा क्षेत्र और निचले क्षेत्र में हुआ था। लेकिन कहीं-कहीं इसके अपवाद भी हैं जैसे धोलावीरा 3 भागों में बटा हुआ था।
महत्वपूर्ण रचनाएं-
अन्नागार–
अन्नागार एक महत्वपूर्ण संरचना थी जोकि दुर्ग क्षेत्र में स्थित थी। इसमें युक्तिपूर्वक वायु निकासी के साधन तथा फसल दबाने के लिए चबूतरे भी बने हुए थे।
स्नानागार-
मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार इसका प्रमुख उदाहरण है। इसका फर्श पक्की ईंटों से बना हुआ होता था। कमरे में विशाल कुआं था जिससे पानी निकालकर हौज में डाला जाता था। जलाशय में उतरने के लिए उत्तर और दक्षिण दिशा में सीढ़ियों की व्यवस्था थी। ऐसा माना जाता है कि इसका उपयोग सार्वजनिक रूप से धार्मिक अनुष्ठान या किसी पवित्र कार्य हेतु किया जाता था।
सभाभवन-
मोहनजोदड़ो में एक सभा भवन के अवशेष मिले हैं। जिसकी 20 स्तंभों पर टिकी हुई है। ऐसा माना जाता है कि इसका प्रयोग धार्मिक सभाओं के लिए किया जाता था।
व्यवसाय-
सिंधु घाटी सभ्यता के अधिकांश नगरवासी व्यापारी या कारीगर प्रतीत होते हैं। कपास और ऊन की कताई इस सभ्यता के लोगों के मध्य काफी प्रचलित थी।
मंदिर
इस सभ्यता में कहीं भी स्पष्ट रूप से मंदिर होने के साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं।
मूर्तियां-
इस काल की मूर्तिकला के अंतर्गत धातु एवं मिट्टी की बनी हुई मूर्तियों का उल्लेख किया जाता है।
दो प्रमुख पुरुष आकृतियां हैं-
लाल बलुआ पत्थर से बनी हुई धड़ प्रतिमा
सेलखड़ी से बनी दाढ़ी युक्त आवक्ष प्रतिमा
सेलखड़ी से निर्मित एक मूर्ति पारदर्शी वस्त्र पहने हुए मिली है। चूने-पत्थर से निर्मित एक मूर्ति कलात्मक दृष्टि से उल्लेखनीय है जो भेड़ और हाथी की संयुक्त मूर्ति है।शरीर और सिंह भेड़ का तथा सूंड हाथी का है। हड़प्पा से प्राप्त कुछ पत्थर की मूर्तियों में गर्दन तथा कंधों में छेद मिले हैं जिससे पता चलता है कि इनके सिर और हाथ अलग से जोड़े गए हैं।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त नर्तकी की मूर्ति जो कांस्य की बनी हुई है, इसकी मूर्ति कलाकार सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
इसके अतिरिक्त कालीबंगा से प्राप्त तांबे की वृषभ मूर्ति अद्वितीय है।
यहां से मातृदेवी, पहियों वाली खिलौना गाड़ी, सीटियां, पक्षियों और पशुओं आदि की मिट्टी की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं।
मुहरें-
मानक हड़प्पा मुहर एक 2×2 इंच की वर्ग पटिट्का थी। जिसे नदियों के कोमल पत्थरों की या सेलखड़ी से बनाया जाता था।
इनका प्रयोग मुख्य रूप से व्यापार एवं वाणिज्य के लिए किया जाता था।
शिक्षा के उपकरण के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता था।
मेसोपोटामिया के मध्य व्यापारिक और राजनीतिक संबंधों की जानकारी भी हमें यहां से प्राप्त होती है।
लिपि-
चित्रमयी लिपि सिंधु घाटी की सभ्यता के लोगों की लिपि चित्र मई और रहस्यमई रही है और इसे समझा नहीं जा सका है।
लोथल से एक नाव के अंकन वाली मुहर मिली है। जिससे इसके बंदरगाह नगर होने का अनुमान लगाया गया है।
मिट्टी के बर्तन-
मिट्टी के बर्तन सादे होते थे और इनको लाल और काले रंग से चित्रित किया जाता था। इनमें से कुछ पात्र अपने चमकीले पन के कारण अत्यंत कलात्मक थे। इन मिट्टी के बर्तनों को चाक पर बनाया गया है।
लोथल से प्राप्त एक मिट्टी के बर्तन पर एक विशेष चित्र उकेरा गया है जिसमें एक कौवा और एक लोमड़ी का चित्र है।
मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग-
घरेलू पानी और अनाज आदि के भंडारण के लिए।
सजावट के लिए लघु आकार के पात्र होते थे।
मनके और आभूषण-
महिलाओं ने कीमती धातुओं, रत्न, हड्डी और पकी हुई मिट्टी से बने विभिन्न आभूषणों से स्वयं का श्रृंगार किया। हार, बाजूबंद और अंगूठियां सामान्यतः पुरुषों और महिलाओं दोनों के द्वारा पहनी जाती थीं। महिलाएं करधनी, कान की बाली और पायल भी पहनती थी।
मनके सेलखड़ी, मोती, स्फटिक, नीलम, हाथी दांत आदि के बने थे। इनका आकार बेलनाकार, गोलाकार, अर्धवृत्ताकार, शंखाकार के प्रकार का होता था।
बेलनाकार मनके सिंधु घाटी सभ्यता में सर्वाधिक लोकप्रिय थे।
सिंदूर, लिपस्टिक, चेहरे पर लगाने वाला रंग और आईलाइनर के भी साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
मुझे आशा है कि आप सिंधु घाटी की सभ्यता के ART AND CULTURE से पूरी तरह परिचित हो गए होंगे। यदि आपको किसी और भी टॉपिक पर जानकारी चाहिए तो आप कमेंट करके बता सकते हैं।
धन्यवाद।
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